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Mathura News: वृंदावन के संतों का ऐलान, रक्षाबंधन पर हिंदुओं से ही खरीदें राखी का सामान
Mathura News: वृंदावन के संतों ने रक्षाबंधन 2025 पर हिंदुओं से अपील की है कि वे राखी और संबंधित सामग्री केवल हिंदू विक्रेताओं से ही खरीदें, ताकि पर्व की पवित्रता और सनातन संस्कृति की रक्षा हो सके।
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Mathura News: वृंदावन, रक्षाबंधन के पावन पर्व को लेकर वृंदावन के संतों ने सनातन धर्मावलंबियों से अपील की है कि वे इस अवसर पर केवल हिंदू विक्रेताओं से ही राखी और संबंधित सामग्री खरीदें। संतों का कहना है कि यह पर्व पवित्रता और सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़ा है, इसलिए इसमें किसी भी तरह की अपवित्रता या आस्था से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए।श्रीकृष्ण जन्मभूमि–मस्जिद प्रकरण के मुख्य याचिकाकर्ता दिनेश फलाहारी महाराज ने कहा, हम मक्का–मदीना में दुकान लगाने नहीं जाते, तो विधर्मी हमारे रक्षाबंधन जैसे पवित्र त्यौहार में घुसपैठ क्यों करें? वे लव जिहाद के उद्देश्य से राखी बेच रहे हैं।उन्होंने लोगों से सतर्क रहने और अपनी धार्मिक पहचान के अनुरूप ही खरीदारी करने की अपील की।
महंत रामदास महाराज ने आरोप लगाया कि विधर्मी पवित्रता से राखी नहीं बनाते हैं, इसलिए ऐसे लोगों से राखी नहीं खरीदनी चाहिए। रक्षाबंधन केवल एक पारिवारिक पर्व नहीं बल्कि बहन-भाई के अटूट विश्वास का प्रतीक है, इसे अशुद्ध हाथों से दूर रखना जरूरी है।आचार्य अंकित कृष्ण जी ने बताया कि इस बार रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त 95 वर्षों बाद आया है। उन्होंने कहा, जब इतने वर्षों बाद इतना दुर्लभ योग बना है, तो हमें इसकी पवित्रता का विशेष ध्यान रखना चाहिए और केवल सनातनी हिंदुओं से ही राखी खरीदनी चाहिए। दूसरे धर्म के लोगों से दूरी बनाए रखना इस पर्व की गरिमा के लिए आवश्यक है।डॉ. सत्यानंद अधिकारी गुरुजी ने तो और सख्त शब्दों में कहा कि कई मुस्लिम विक्रेता राखी में थूक देते हैं।पवित्रता का ध्यान नहीं रखते हैं। इसलिए सभी माता-बहनों को केवल सनातनी विक्रेताओं से ही खरीदारी करनी चाहिए।
संतों का कहना है कि यह त्यौहार न केवल भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करता है, बल्कि यह सनातन धर्म की संस्कृति और परंपराओं का भी प्रतीक है। उनका तर्क है कि जब अन्य धर्म अपने त्योहारों में बाहरी हस्तक्षेप नहीं चाहते, तो हिंदुओं को भी अपने पर्वों में बाहरी दखल को रोकना चाहिए।रक्षाबंधन पर यह अपील पूरे ब्रज क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी हुई है, और संतों का संदेश सोशल मीडिया से लेकर स्थानीय बाजारों तक तेजी से फैल रहा है।
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