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अमेरिका के हमलों से डर गया चीन! जंग में ईरान अकेला, दोस्तों ने भी मुश्किल समय में छोड़ा साथ

Middle East Conflict: चीन ने फिलहाल कूटनीतिक संतुलन साधने की नीति अपनाई है और किसी भी तरह की सीधी सैन्य या ठोस राजनीतिक प्रतिक्रिया से परहेज किया है।

Snigdha Singh
Published on: 23 Jun 2025 9:12 AM IST
अमेरिका के हमलों से डर गया चीन! जंग में ईरान अकेला, दोस्तों ने भी मुश्किल समय में छोड़ा साथ
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China Iran Relation: अमेरिका द्वारा ईरान की परमाणु स्थलों पर किए गए हालिया हमलों के बाद पश्चिम एशिया में तनाव तेजी से बढ़ा है। इस हमले के बाद जहां ईरान खुद को एक हद तक अलग-थलग महसूस कर रहा है, वहीं उसके परंपरागत सहयोगी देशों में भी स्पष्ट समर्थन की कमी दिखाई दे रही है। खासकर चीन का रुख चौंकाने वाला रहा है, जो अब तक ईरान का प्रमुख रणनीतिक सहयोगी माना जाता रहा है।

हालांकि बीजिंग ने अमेरिका की कार्रवाई की आलोचना करते हुए इसे अंतरराष्ट्रीय परमाणु अप्रसार व्यवस्था के लिए खतरा बताया और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यह मुद्दा उठाया, लेकिन उसके बयान सतही और बेहद सावधानी से तैयार किए गए लगते हैं। विश्लेषकों का कहना है कि चीन ने फिलहाल कूटनीतिक संतुलन साधने की नीति अपनाई है और किसी भी तरह की सीधी सैन्य या ठोस राजनीतिक प्रतिक्रिया से परहेज किया है।

तेल और व्यापार के समीकरण

चीन और ईरान के बीच मजबूत आर्थिक और सैन्य संबंध हैं। चीन ईरान से बड़ी मात्रा में कच्चा तेल आयात करता है, जो उसकी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए महत्वपूर्ण है। दोनों देश संयुक्त सैन्य अभ्यास भी करते हैं और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक-दूसरे का समर्थन करते रहे हैं। इसके बावजूद चीन ने इस संवेदनशील मौके पर ईरान को केवल राजनीतिक बयानबाज़ी तक सीमित समर्थन दिया है।

बीजिंग ने न केवल सैन्य हस्तक्षेप से दूरी बनाई, बल्कि अमेरिका के खिलाफ कोई ठोस प्रस्ताव या कार्रवाई का सुझाव भी नहीं दिया। इसके बजाय उसने एक बार फिर मध्यस्थता की पेशकश कर खुद को एक 'जिम्मेदार वैश्विक शक्ति' के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की है।

रणनीति या अवसरवाद?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चीन की यह ‘दोहरी नीति’ पूरी तरह उसके भू-राजनीतिक और आर्थिक हितों पर आधारित है। अगर वह खुलकर ईरान का समर्थन करता है, तो अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ उसके रिश्तों पर असर पड़ सकता है। वहीं, ईरान के साथ तनाव बढ़ने से उसकी तेल आपूर्ति पर भी खतरा मंडरा सकता है।

संयुक्त राष्ट्र में चीन के प्रतिनिधि ने भले ही अमेरिका की नीतियों को मध्य पूर्व में अस्थिरता का कारण बताया, लेकिन उन्होंने किसी तरह की ठोस रणनीति या प्रतिक्रिया की बात नहीं की। इससे यह साफ होता है कि चीन इस पूरे मामले में 'स्थिति को देखने और समझने' की मुद्रा में है, बजाय इसके कि वह स्पष्ट रूप से किसी पक्ष के साथ खड़ा हो।

इतिहास खुद को दोहराता है

यह पहला मौका नहीं है जब चीन ने किसी विवादित अंतरराष्ट्रीय मुद्दे पर 'संतुलन की नीति' अपनाई हो। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भी चीन ने किसी एक पक्ष का खुला समर्थन नहीं किया था, बल्कि दोनों के बीच मध्यस्थता की पेशकश कर अपनी वैश्विक छवि को चमकाने का प्रयास किया। ईरान के मसले पर भी उसका यही रुख दिखाई देता है।

भविष्य में नुकसान की आशंका

कुछ रणनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की यह 'नपी-तुली' रणनीति भविष्य में उसे नुकसान पहुंचा सकती है। अगर वह अपने सहयोगी देशों का खुला समर्थन नहीं करता, तो उसका प्रभाव क्षेत्रीय राजनीति में कम हो सकता है। वहीं, अमेरिका के साथ संबंधों में खटास आने की स्थिति में उसके व्यापारिक हित भी प्रभावित हो सकते हैं।

चीन की प्राथमिकता- स्वार्थपूर्ण स्थिरता

अमेरिकी हमलों के बाद चीन ने भले ही औपचारिक आलोचना की हो, लेकिन उसकी नीति पूरी तरह से आर्थिक और कूटनीतिक संतुलन साधने पर केंद्रित रही। इससे यह साफ हो गया है कि बीजिंग की विदेश नीति में आदर्शवाद से ज्यादा जगह रणनीतिक स्वार्थ को दी गई है। इस बीच, ईरान खुद को राजनीतिक रूप से अलग-थलग महसूस कर रहा है, और मध्य पूर्व में अस्थिरता की आशंका लगातार बनी हुई है।

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Snigdha Singh

Snigdha Singh

Leader – Content Generation Team

Hi! I am Snigdha Singh, leadership role in Newstrack. Leading the editorial desk team with ideation and news selection and also contributes with special articles and features as well. I started my journey in journalism in 2017 and has worked with leading publications such as Jagran, Hindustan and Rajasthan Patrika and served in Kanpur, Lucknow, Noida and Delhi during my journalistic pursuits.

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