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Donald Trump News: पूर्व रूसी राष्ट्रपति की 'डेड हैंड' धमकी पर ट्रंप का जवाब, अमेरिका ने तैनात की दो परमाणु पनडुब्बियां, बढ़ा वैश्विक परमाणु तनाव
US President Donald Trump: अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हाल के दिनों में फिर एक बार ऐसा मोड़ आया है, जिसने दुनिया को परमाणु संघर्ष की ओर झांकने को मजबूर कर दिया है।
Trump Responds to Russia Dead Hand Threat by Deploying Nuclear Submarines
US President Donald Trump: अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हाल के दिनों में फिर एक बार ऐसा मोड़ आया है, जिसने दुनिया को परमाणु संघर्ष की ओर झांकने को मजबूर कर दिया है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस के पूर्व राष्ट्रपति और वर्तमान सुरक्षा परिषद उपाध्यक्ष दिमित्री मेदवेदेव की 'डेड हैंड' वाली धमकी के जवाब में दो परमाणु पनडुब्बियों को रणनीतिक रूप से तैनात करने का बड़ा फैसला लिया है। ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ’ पर इस फैसले की जानकारी दी और रूस के भड़काऊ बयानों को 'मूर्खतापूर्ण और खतरनाक' करार दिया। आइए जानते हैं इस मुद्दे पर विस्तार से -
ट्रंप की चेतावनी और रूस को भेजा गया कड़ा संदेश
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने बयान में कहा कि शब्दों की ताकत होती है और उनका असर कई बार अनपेक्षित लेकिन गंभीर परिणामों के रूप में सामने आता है। ट्रंप के अनुसार, मेदवेदेव के बयान इतने भड़काऊ थे कि उनके जवाब में अमेरिका को सख्त कदम उठाना पड़ा। उन्होंने कहा कि दो परमाणु-सक्षम पनडुब्बियों को अब उन क्षेत्रों में तैनात कर दिया गया है, जिन्हें अमेरिकी रणनीति के अनुसार ‘उपयुक्त’ कहा गया है। ट्रंप ने कहा कि वह उम्मीद करते हैं कि यह उन घटनाओं में से एक न हो जो केवल शब्दों की वजह से युद्ध में बदल जाएं, लेकिन अमेरिका पूरी तरह तैयार है।
मेदवेदेव की धमकी में ‘डेड हैंड’ का संकेत और उसका मतलब
रूस के पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने ट्रंप के एक बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए अपने टेलीग्राम चैनल पर चेतावनी दी थी कि ट्रंप जैसे नेता अगर रूस की अर्थव्यवस्था को 'डेड' कह रहे हैं, तो उन्हें 'डेड हैंड' जैसी परमाणु व्यवस्था के खतरे को भी याद रखना चाहिए। उन्होंने ‘वॉकिंग डेड’ जैसे हॉलीवुड शोज का हवाला देते हुए व्यंग्यात्मक अंदाज़ में कहा कि ट्रंप को यह जानना चाहिए कि कुछ चीजें चाहे अब अस्तित्व में न भी हों, लेकिन उनका प्रभाव कितना विनाशकारी हो सकता है। 'डेड हैंड' दरअसल रूस की शीत युद्धकालीन स्वचालित परमाणु जवाबी प्रणाली का नाम है, जिसे पेरिमीटर सिस्टम भी कहा जाता है। यह प्रणाली तब सक्रिय होती है जब देश के नेतृत्व पर हमला हो चुका हो और जवाब देने वाला कोई न बचा हो। तब यह सिस्टम स्वत: मिसाइलें लॉन्च कर देता है, यानी परमाणु युद्ध को टालना तकरीबन असंभव हो जाता है।
परमाणु पनडुब्बी क्या होती है और क्यों अमेरिका ने इन्हें तैनात किया
परमाणु पनडुब्बी एक ऐसी अत्याधुनिक जलपोत प्रणाली होती है जो परमाणु ऊर्जा से संचालित होती है और इसमें न्यूक्लियर हथियार ले जाने और छोड़ने की क्षमता होती है। इन पनडुब्बियों की सबसे बड़ी ताकत यह होती है कि वे महीनों तक बिना सतह पर आए गहरे समुद्र में छिपी रह सकती हैं, जिससे इनका पता लगाना लगभग असंभव हो जाता है। अमेरिका की इन पनडुब्बियों में इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें होती हैं जो हजारों किलोमीटर दूर स्थित लक्ष्यों को मिनटों में तबाह कर सकती हैं। यही कारण है कि इन्हें ‘सेकंड स्ट्राइक कैपेबिलिटी’ का मूल स्तंभ माना जाता है। ट्रंप द्वारा इन्हें तैनात करने का आदेश देना वैश्विक मंच पर एक सशक्त संदेश है कि अमेरिका परमाणु संतुलन बनाए रखने के लिए गंभीर और सक्षम है।
भारत-रूस पर ट्रंप की टिप्पणी से भड़का रूस और विवाद कैसे शुरू हुआ
इस पूरे विवाद की शुरुआत तब हुई जब डोनाल्ड ट्रंप ने सार्वजनिक मंच पर रूस और भारत की अर्थव्यवस्था को ‘डेड’ कहा। उन्होंने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को सबसे ताकतवर बताते हुए कहा कि भारत और रूस की इकॉनोमी अमेरिका के सामने कुछ नहीं हैं। इस टिप्पणी ने रूस को बुरी तरह नाराज़ कर दिया। मेदवेदेव ने ट्रंप की इस टिप्पणी को न केवल अपमानजनक बताया बल्कि इसे वैश्विक रणनीतिक संतुलन को खतरे में डालने वाला बयान बताया। उन्होंने यह भी दावा किया कि अगर अमेरिका ईरान पर हमला करता है, तो कई देश ईरान को परमाणु हथियार उपलब्ध करवा सकते हैं। जिससे परमाणु अप्रसार संधि यानी NPT की पूरी प्रणाली खतरे में पड़ सकती है।
क्या ट्रंप का यह कदम केवल शक्ति प्रदर्शन है या चुनावी रणनीति ?
डोनाल्ड ट्रंप 2024 के राष्ट्रपति चुनावों के लिए रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से प्रमुख उम्मीदवार हैं। उनके कई समर्थक उन्हें एक निर्णायक, शक्तिशाली नेता मानते हैं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या परमाणु पनडुब्बियों की तैनाती वास्तव में रणनीतिक सैन्य कदम है या यह चुनावी रणनीति के तहत ‘अमेरिका फर्स्ट’ छवि को मज़बूत करने की कोशिश है। ट्रंप अपने कार्यकाल में भी इस तरह की आक्रामक विदेश नीति के लिए जाने जाते थे, चाहे वह उत्तर कोरिया हो, ईरान या चीन। अब फिर से रूस के साथ तनाव बढ़ाकर वे अंतरराष्ट्रीय राजनीति में ‘मजबूत नेता’ की भूमिका को दोहराने की कोशिश कर सकते हैं।
रूस-अमेरिका परमाणु तनाव के बीच भारत की कूटनीतिक स्थिति
विश्लेषकों की राय के अनुसार भारत के लिए यह स्थिति और भी संवेदनशील हो जाती है क्योंकि ट्रंप ने भारत की अर्थव्यवस्था को भी कमतर बताया और वहीं भारत रूस का पारंपरिक सहयोगी भी रहा है। दूसरी ओर, भारत अमेरिका के साथ रक्षा, व्यापार और तकनीकी सहयोग बढ़ा रहा है। ऐसे में दोनों महाशक्तियों के बीच बढ़ते तनाव में भारत को अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता बनाए रखनी होगी। यह कूटनीतिक संतुलन साधना भारत के लिए एक बड़ी चुनौती होगा क्योंकि उसे न तो किसी गुट में शामिल होना है और न ही अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता करना है।
परमाणु अप्रसार संधि और विश्व पर इसका असर
दुनिया भर में परमाणु हथियारों को सीमित करने के लिए बनी परमाणु अप्रसार संधि (NPT) का मकसद यह सुनिश्चित करना था कि परमाणु हथियार सिर्फ उन्हीं देशों के पास रहें जिनके पास पहले से हैं और नए देश इस होड़ में शामिल न हों। लेकिन अमेरिका और रूस जैसे स्थायी सदस्य खुद ही जब इस तरह की सार्वजनिक धमकियों और तैनातियों का सहारा लेने लगते हैं, तो यह संधि कमजोर हो जाती है। इससे उन देशों को भी बहाना मिल सकता है जो खुद को परमाणु शक्ति के रूप में विकसित करना चाहते हैं।
क्या फिर एक बार दुनिया खड़ी है परमाणु युद्ध की दहलीज पर?
जब दो महाशक्तियां खुलकर एक-दूसरे को धमकी देने लगें, और उनके नेता परमाणु हथियारों की तैनाती के आदेश देने लगें, तो यह किसी त्रासदी का पूर्वाभास हो सकता है। इतिहास बताता है कि कई बार गलतफहमी, अभिमान और शब्दों की तल्खी से ऐसे युद्ध छिड़े हैं जिनका कोई विजेता नहीं होता। आज की स्थिति में कूटनीति और संयम की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है। एक छोटी सी चूक या प्रतिक्रिया भी भारी तबाही ला सकती है, और यदि ‘डेड हैंड’ जैसी प्रणाली को ट्रिगर कर दिया गया तो मानवता के पास बचाव का कोई रास्ता नहीं बचेगा।
इस मुद्दे पर राजनीतिक विश्लेषकों की राय के अनुसार परमाणु हथियार शक्ति का नहीं, बल्कि जिम्मेदारी का प्रतीक होने चाहिए। अमेरिका और रूस जैसे देशों के पास केवल शक्ति ही नहीं, बल्कि विश्व शांति को बनाए रखने की भी जिम्मेदारी है। ट्रंप और मेदवेदेव के बयानों ने दुनिया को जिस रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया है, वहां से पीछे लौटना ही बुद्धिमानी है। संवाद, समझ और संयम के साथ ही इस संकट से निकला जा सकता है वरना इतिहास एक और विनाशकारी अध्याय जोड़ने को तैयार खड़ा है।
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