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चीन का घमंड टूटेगा? भारत-रूस मिलकर बना रहे हैं रेयर अर्थ मेटल्स का पावरफुल हथियार!
भारत और रूस अब रेयर अर्थ मेटल्स में मिलकर काम कर रहे हैं ताकि चीन के एकाधिकार को तोड़ा जा सके, ऑटोमोबाइल, ऊर्जा और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उद्योगों में भारत की निर्भरता कम हो और नई तकनीक से उत्पादन क्षमता बढ़े।
India-Russia Join Forces Rare Earth: भारत-रूस की साझेदारी अब तेल से आगे बढ़कर रेयर अर्थ मेटल्स (Rare Earth Metals) तक फैल गई है, जो भारत की चीन पर निर्भरता को कम करने की बड़ी रणनीति है। चीन के वैश्विक रेयर अर्थ मार्केट में लगभग 90% हिस्सेदारी होने और उसके निर्यात नियंत्रण सख्त करने के बाद भारत ने रूस के साथ मिलकर इस क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने का फैसला किया है। यह साझेदारी ऑटोमोबाइल, ऊर्जा, और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उद्योगों की आपूर्ति श्रृंखला को मज़बूत बनाने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। रूस ने रेयर अर्थ प्रोसेसिंग तकनीकों का विकास किया है, जिन्हें पायलट प्रोजेक्ट्स में लागू किया जा चुका है, और अब भारत के साथ मिलकर इन तकनीकों का व्यावसायीकरण करना चाहता है।
चीन पर भारत-रूस का कदम
भारत और रूस अब रेयर अर्थ (Rare Earth) मेटल्स के क्षेत्र में मिलकर काम कर रहे हैं। इसका उद्देश्य चीन के एकाधिकार को कम करना और भारत को इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना है। दोनों देश रूस में विकसित तकनीकों का बड़े पैमाने पर व्यावसायिक उपयोग और मैग्नेट्स (Magnets) के उत्पादन पर काम कर रहे हैं।
यह कदम खासकर चीन के निर्यात प्रतिबंधों का जवाब देने के लिए उठाया जा रहा है, जो भारत के ऑटोमोबाइल, ऊर्जा और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उद्योगों को प्रभावित कर रहे हैं। भारत और रूस का यह सहयोग भारत को रेयर अर्थ मेटल्स में आत्मनिर्भर बनाने में मदद करेगा।
चीन का रेयर अर्थ मार्केट पर कब्जा और भारत की चुनौती
चीन वैश्विक रेयर अर्थ प्रोसेसिंग मार्केट का लगभग 90% हिस्सा नियंत्रित करता है। अप्रैल 2025 में चीन ने रेयर अर्थ मेटल्स के निर्यात पर और कड़े प्रतिबंध लगा दिए। इसके कारण दुनिया के कई देश, खासकर भारत, की सप्लाई चेन प्रभावित हुई।
भारत ने वित्त वर्ष 2023-24 में लगभग 2,270 टन रेयर अर्थ मेटल्स का आयात किया, जिसमें से 65% से ज्यादा चीन से आया। इससे स्पष्ट है कि भारत के लिए चीन पर निर्भरता कम करना अब बहुत जरूरी हो गया है।
भारत-रूस सहयोग के पहलू
रूस ने नई रेयर अर्थ प्रोसेसिंग तकनीकें विकसित की हैं। अब मॉस्को भारत के साथ मिलकर इन तकनीकों का व्यावसायिक उपयोग बढ़ाना चाहता है।
भारत की कंपनियां और शोध संस्थान, जैसे लोहुम, मिडवेस्ट, CSIR, इंडियन स्कूल ऑफ माइंस और इंस्टीट्यूट ऑफ मिनरल्स एंड मैटेरियल्स टेक्नोलॉजी (भुवनेश्वर), रूस की इन तकनीकों का अध्ययन कर रहे हैं।
साथ ही, रूसी सरकारी कंपनियां नॉरनिकेल और रोसाटॉम के साथ साझेदारी के मौके भी देखे जा रहे हैं। इससे भारत की रणनीतिक निर्भरता कम होगी और नई टेक्नोलॉजी से उत्पादन क्षमता बढ़ेगी।
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