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Jane in Tax Net: Jane Street पर टैक्स विभाग की नजर - गहरे जाल में फंसा विदेशी निवेशक?
Jane in Tax Net: Jane Street ने भारत की अपनी दो कंपनियों - JSI Investments और JSI2 Investments - का इस्तेमाल दिनभर के शेयर सौदों (Intraday Cash Equity Trades) में किया।
Jane in Tax Net (Image Credit-Social Media)
Jane in Tax Net: भारत के शेयर बाजार में हाल ही में Jane Street नाम की एक अंतरराष्ट्रीय ट्रेडिंग फर्म को लेकर एक गंभीर मामला सामने आया है, जिसने टैक्स अधिकारियों और रेगुलेटरी एजेंसियों को सतर्क कर दिया है। बेहद कम समय में भारी मुनाफा कमाने वाली इस फर्म पर आरोप है कि उसने भारत और विदेश में मौजूद अपनी सहयोगी संस्थाओं के जरिए ऐसी ट्रेडिंग की, जिससे टैक्स नियमों को दरकिनार किया गया। माना जा रहा है कि यह पूरा ढांचा एक “अस्वीकार्य बचाव योजना” (impermissible avoidance arrangement) हो सकता है। आयकर विभाग अब इसे GAAR (General Anti-Avoidance Rule) के तहत जांचने की तैयारी में है।
GAAR नियम क्या कहता है?
GAAR यानी General Anti-Avoidance Rule के अनुसार, अगर कोई कंपनी टैक्स बचाने के लिए केवल दिखावे का कारोबार करती है या किसी ऐसी योजना को अपनाती है जिसका कोई व्यावसायिक उद्देश्य नहीं है, तो उसे ‘अनुचित बचाव व्यवस्था’ (impermissible avoidance arrangement) माना जा सकता है।
कैसे किया गया टैक्स से बचाव का प्रयास?
Jane Street ने भारत की अपनी दो कंपनियों - JSI Investments और JSI2 Investments - का इस्तेमाल दिनभर के शेयर सौदों (Intraday Cash Equity Trades) में किया। ये कंपनियां सुबह शेयर खरीदतीं और बाजार बंद होने से पहले बेच देतीं, ताकि कीमतों पर असर डाला जा सके। वहीं दूसरी तरफ, समूह की सिंगापुर और हांगकांग स्थित FPIs (Foreign Portfolio Investors) - Jane Street Singapore और Jane Street Asia Trading - ने ऑप्शन मार्केट में बड़े सौदे किए, जहां भारी मुनाफा हुआ।
सिंगापुर की कंपनी ने इन मुनाफों पर कोई टैक्स नहीं दिया क्योंकि भारत और सिंगापुर के बीच एक टैक्स संधि है, जिसके तहत ऐसे लाभ कर-मुक्त होते हैं। भारतीय कंपनियों को या तो घाटा हुआ या नाममात्र का मुनाफा हुआ, जिससे उनका टैक्स बहुत कम बना।
GAAR क्यों लग सकता है?
टैक्स सलाहकारों का कहना है कि यह पूरी व्यवस्था जानबूझकर इस तरह बनाई गई ताकि भारतीय टैक्स नियमों से बचा जा सके। Girish Vanvari, जो Transaction Square के संस्थापक हैं, के अनुसार, “भारतीय संस्थाओं को इसलिए इस्तेमाल किया गया ताकि FPIs की दिनभर की ट्रेडिंग पर लगी रोक को पार किया जा सके। इस तरह के आर्टिफिशियल अरेंजमेंट पर GAAR के तहत सवाल उठाए जा सकते हैं।”
SEBI की रिपोर्ट क्या कहती है?
SEBI (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) की रिपोर्ट के मुताबिक, Jane Street के भारत और विदेश में स्थित संस्थान एक साथ मिलकर ट्रेडिंग कर रहे थे। अगर यह आरोप सिद्ध होता है, तो भारतीय कंपनियों को 'डिपेंडेंट एजेंट' माना जा सकता है। इसका मतलब यह होगा कि विदेशी कंपनियों की कमाई का एक हिस्सा भारत में टैक्स के दायरे में आ सकता है।
चार्टर्ड अकाउंटेंट्स की राय
Harshal Bhuta, जो PR Bhuta & Co के पार्टनर हैं, ने कहा, “अगर यह सिद्ध हो जाए कि मुनाफे को ऐसे संस्थानों में ट्रांसफर किया गया है जिन्हें टैक्स लाभ मिलते हैं, तो GAAR लागू किया जा सकता है और मुनाफा उन कंपनियों में शिफ्ट हो सकता है जो भारत में टैक्स देती हैं।”
मिरर ट्रेडिंग का शक
SEBI का मानना है कि अलग-अलग संस्थानों ने ऐसे सौदे किए जो 'मिरर ट्रेड' कहे जा सकते हैं - यानी एक संस्था खरीद रही थी तो दूसरी बेच रही थी - और इनका संचालन एक ही केंद्र से हो रहा था। इससे यह शक और गहरा हो गया है कि यह पूरी व्यवस्था एक कृत्रिम जाल थी ताकि टैक्स बचाया जा सके।
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