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Vice President Election 2025: संसद की संरचना, अंकगणित और लोकतंत्र का मनोविज्ञान, NDA की जीत लगभग तय
Vice President Election 2025: उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 संसद की संरचना और अंकगणित के लिहाज़ से एनडीए को साफ़ बढ़त दिलाता हुआ दिख रहा है।
Vice President Election 2025 (Image Credit-Social Media)
Vice President Election 2025: भारत की संसदीय राजनीति का हर बड़ा चुनाव केवल संख्याओं का जोड़-घटाव नहीं होता, बल्कि उसके भीतर लोकतंत्र की मनोवृत्तियाँ और राजनीतिक संदेश भी छिपे रहते हैं। उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 इसी परंपरा की अगली कड़ी है। यह चुनाव महज़ एक संवैधानिक पद भरने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि संसद के दोनों सदनों की वास्तविक स्थिति, दलों की रणनीति और जनता तक जाने वाले संदेश का आईना भी है।
अगर केवल परिणाम की दृष्टि से देखें तो तस्वीर एकदम साफ़ है—सत्ता पक्ष के उम्मीदवार की जीत लगभग तय है। इस चुनाव में बहुमत के लिए 395 वोटों की आवश्यकता है, जबकि एनडीए पहले से ही लगभग 427–430 वोटों के मजबूत ब्लॉक के साथ मैदान में उतर रहा है। ऐसे में यह भी संभव है कि सत्ता पक्ष अपने पाले में अतिरिक्त बीस-पच्चीस वोट जुटाकर एक प्रतीकात्मक “बड़े अंतर की जीत” का संदेश दे।
संसद का गणित
उपराष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा, दोनों सदनों के सांसद मिलकर मतदान करते हैं। कुल मतदाता लगभग 788 होते हैं (543 लोकसभा + 245 राज्यसभा)। रिक्तियों या अनुपस्थितियों के कारण यह संख्या थोड़ी ऊपर-नीचे हो सकती है।
राज्यसभा की स्थिति देखें तो बहुमत के लिए 123 वोट चाहिए। एनडीए के पास यहाँ लगभग 115–118 सांसद हैं, जबकि विपक्ष के पास करीब 100–105। शेष 25–30 सांसद वे हैं जिनकी स्थिति परिस्थिति और राजनीतिक समीकरणों के अनुसार बदल सकती है। यानी एनडीए पहले से ही बहुमत के बेहद करीब है और ऊपरी सदन में उसकी स्थिति काफ़ी सुरक्षित मानी जा रही है।
लोकसभा का पूरा सदन 552 का होता है, पर वास्तव में 543 सदस्य निर्वाचित हैं। यहाँ एनडीए के पास लगभग 293 सांसद हैं, जबकि विपक्षी इंडिया ब्लॉक और उसके सहयोगियों की ताक़त लगभग 234 तक पहुँचती है। अन्य छोटे दल और निर्दलीय मिलाकर करीब 15 सदस्य हैं। एक सीट फिलहाल रिक्त है। स्पष्ट है कि लोकसभा में भी एनडीए का पलड़ा भारी है और उसके पास आरामदायक बहुमत है।
उम्मीदवार और राजनीतिक संदेश
एनडीए ने तमिलनाडु से ताल्लुक रखने वाले वरिष्ठ नेता और मौजूदा महाराष्ट्र के राज्यपाल सी. पी. राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाया है। विपक्ष की ओर से पूर्व न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी मैदान में हैं। यह सीधा मुकाबला दो ध्रुवों के बीच है।
दक्षिण भारत से उम्मीदवार लाकर भाजपा यह संदेश देना चाहती है कि वह केवल उत्तर भारतीय राजनीति तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे देश का प्रतिनिधित्व करती है। साथ ही, ओबीसी पृष्ठभूमि से आने वाले राधाकृष्णन को आगे कर पार्टी सामाजिक समीकरणों में भी एक सशक्त संकेत देना चाहती है। भाजपा नेतृत्व को भरोसा है कि सहयोगी दलों के अलावा कुछ तटस्थ क्षेत्रीय दल भी उसके साथ आएंगे।
विपक्ष ने न्यायपालिका की साख और संविधान की गरिमा को मुद्दा बनाते हुए बी. सुदर्शन रेड्डी को सामने किया है। उनकी रणनीति यह है कि छोटे दलों के झुकाव और संभावित असंतोष का लाभ लेकर मुकाबले को कुछ हद तक रोचक बनाया जाए। लेकिन विपक्षी एकता अभी भी अधूरी है और क्षेत्रीय दल अपने-अपने हितों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
छोटे दलों की भूमिका
भारतीय लोकतंत्र में निर्णायक भूमिका अक्सर छोटे दलों और निर्दलीयों की होती है। इस बार भी बीजू जनता दल (BJD), वाईएसआर कांग्रेस (YSRCP), तेलुगु देशम पार्टी (TDP) और जनता दल (यू) जैसे दल अहम भूमिका निभा सकते हैं।
बिहार चुनाव को ध्यान में रखते हुए माना जा रहा है कि नीतीश कुमार के लिए भाजपा के साथ बने रहना ही व्यावहारिक विकल्प है। बीजेडी अतीत में कई बार अप्रत्याशित क्रॉस-वोटिंग कर चुका है, जबकि वाईएसआर कांग्रेस जैसी पार्टियाँ व्यावहारिक राजनीति के हिसाब से निर्णय लेती हैं। यही वजह है कि उपराष्ट्रपति चुनाव केवल सीधे बहुमत के आंकड़े पर आधारित न होकर राजनीतिक विश्वास और समीकरणों पर भी टिका होता है।
निष्कर्ष
उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 संसद की संरचना और अंकगणित के लिहाज़ से एनडीए को साफ़ बढ़त दिलाता हुआ दिख रहा है। लेकिन भारतीय राजनीति का अनुभव यही बताता है कि लोकतंत्र महज़ संख्याओं का गणित नहीं, बल्कि संदेशों, प्रतीकों और मनोविज्ञान की परतों से आकार लेता है। छोटे दलों की भूमिका, विपक्षी एकता की परीक्षा और जनता तक पहुँचने वाले राजनीतिक संकेत—इन सबके बीच यह चुनाव आने वाले वर्षों की राजनीति की दिशा तय करने वाला एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित होगा।
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