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Pandora Papers Kya Tha: चौकाने वाले राज सचिन से लेकर अंबानी तक के, पैंडोरा पेपर्स क्या थे और कितने लोग इसकी चपेट में आये

Pandora Papers Kya Tha: पैंडोरा पेपर्स 11.9 मिलियन यानी करीब 1.19 करोड़ गोपनीय दस्तावेजों का एक बड़ा समूह था, जिसमें 2.9 टेराबाइट डेटा था।

Akshita Pidiha
Published on: 11 July 2025 8:00 AM IST (Updated on: 11 July 2025 8:00 AM IST)
Pandora Papers Kya Tha
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Pandora Papers Kya Tha (Image Credit-Social Media)

Pandora Papers Kya Tha: पैंडोरा पेपर्स का नाम सुनते ही दिमाग में एक रहस्यमयी और सनसनीखेज कहानी का ख्याल आता है। साल 2021 में जब ये पेपर्स लीक हुए, तो पूरी दुनिया में हंगामा मच गया। इसमें कई देशों के बड़े-बड़े लोग, जैसे राजनेता, कारोबारी, और मशहूर हस्तियां शामिल थीं, जिनके गुप्त वित्तीय लेन-देन का पर्दाफाश हुआ। भारत में भी कई बड़े नाम, जैसे सचिन तेंदुलकर, अनिल अंबानी और किरण मजूमदार शॉ सामने आए।

पैंडोरा पेपर्स क्या थे?

पैंडोरा पेपर्स 11.9 मिलियन यानी करीब 1.19 करोड़ गोपनीय दस्तावेजों का एक बड़ा समूह था, जिसमें 2.9 टेराबाइट डेटा था। इन दस्तावेजों में ईमेल, स्प्रेडशीट, इमेज, और कई तरह की फाइलें थीं, जो दुनिया भर के अमीर और ताकतवर लोगों के गुप्त वित्तीय लेन-देन को उजागर करती थीं। इनमें 35 मौजूदा और पूर्व राष्ट्राध्यक्ष, 100 से ज्यादा अरबपति, और कई मशहूर हस्तियां शामिल थीं। ये दस्तावेज 14 अलग-अलग फाइनेंशियल सर्विस कंपनियों से आए थे, जो पनामा, स्विट्जरलैंड, और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों में काम करती थीं।


इन पेपर्स को इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (ICIJ) ने 3 अक्टूबर 2021 को दुनिया के सामने रखा। ICIJ एक गैर-लाभकारी संगठन है, जो दुनिया भर के पत्रकारों के साथ मिलकर ऐसी बड़ी जांच करता है। इस बार की लीक को अब तक की सबसे बड़ी वित्तीय लीक माना गया, क्योंकि ये 2016 के पनामा पेपर्स से भी बड़ी थी, जिसमें 11.5 मिलियन दस्तावेज थे। पैंडोरा पेपर्स ने दिखाया कि कैसे दुनिया के अमीर लोग अपने पैसे को टैक्स हैवन में छिपाते हैं और टैक्स चोरी करते हैं।

पैंडोरा पेपर्स कैसे लीक हुए?

पैंडोरा पेपर्स की लीक की कहानी अपने आप में एक रहस्य है। ICIJ ने ये कभी नहीं बताया कि उन्हें ये दस्तावेज किसने दिए। बस इतना कहा गया कि एक अनजान स्रोत ने ये गोपनीय दस्तावेज उनके पास पहुंचाए। ये दस्तावेज इतने बड़े और जटिल थे कि इन्हें समझने और जांचने के लिए ICIJ ने 117 देशों के 150 न्यूज ऑर्गनाइजेशन्स के साथ मिलकर काम किया। इसमें ब्रिटेन का द गार्जियन, भारत का द इंडियन एक्सप्रेस, और बीबीसी जैसे बड़े नाम शामिल थे।

इन दस्तावेजों को समझने में पत्रकारों को करीब दो साल लगे। चूंकि डेटा बहुत बड़ा था, इसलिए इसे डिकोड करने और हर देश के हिसाब से अलग-अलग करना एक बड़ा काम था। पत्रकारों ने हर दस्तावेज को बारीकी से जांचा और ये देखा कि कौन-कौन से लोग इसमें शामिल हैं। इस जांच में टेक्नोलॉजी का भी बहुत इस्तेमाल हुआ, जैसे डेटा एनालिसिस सॉफ्टवेयर, ताकि इतने बड़े डेटा को जल्दी और सही तरीके से समझा जा सके।

लीक होने की वजह से दुनिया भर में कई लोगों के गुप्त कारनामों का खुलासा हुआ। ये दस्तावेज 14 फाइनेंशियल सर्विस कंपनियों से आए थे, जो ऑफशोर कंपनियां और ट्रस्ट बनाती थीं। ऑफशोर कंपनियां ऐसी कंपनियां होती हैं, जो किसी दूसरे देश में रजिस्टर्ड होती हैं, जहां टैक्स के नियम बहुत ढीले होते हैं। इनका इस्तेमाल अक्सर पैसे छिपाने, टैक्स बचाने, या गैरकानूनी लेन-देन के लिए होता है।

भारत में पैंडोरा पेपर्स का असर


भारत में पैंडोरा पेपर्स ने कई बड़े नामों को उजागर किया। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इसमें 300 से ज्यादा भारतीय शामिल थे। इनमें कुछ मशहूर कारोबारी, राजनेता, और हस्तियां थीं। कुछ प्रमुख नाम थे:

सचिन तेंदुलकर: क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन का नाम भी इसमें आया। हालांकि, उनके वकील ने कहा कि उनकी निवेश पूरी तरह कानूनी है और टैक्स अथॉरिटी को इसकी जानकारी दी गई थी।

अनिल अंबानी: रिलायंस ग्रुप के चेयरमैन, जिनके ऑफशोर ट्रस्ट और कंपनियों का खुलासा हुआ।

किरण मजूमदार शॉ: बायोकॉन की फाउंडर, जिनके नाम पर भी ऑफशोर होल्डिंग्स थीं।

नीरव मोदी की बहन पूर्वी मोदी: भगोड़े कारोबारी नीरव मोदी की बहन का नाम भी लीक में शामिल था।

राधे श्याम सराफ: हयात होटल्स की चेन चलाने वाले कारोबारी, जिनके बेलीज में ट्रस्ट थे।

इनके अलावा कई और लोग थे, जिनमें कुछ कारोबारी और राजनेता शामिल थे। भारत सरकार ने इस लीक के बाद एक मल्टी-एजेंसी ग्रुप बनाया, जिसमें आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय (ED), और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया शामिल थे। इस ग्रुप को इन सभी नामों की जांच करने का काम सौंपा गया। वित्त मंत्रालय ने कहा कि वो पहले भी पनामा पेपर्स जैसे लीक की जांच कर चुके हैं और इस बार भी सख्त कार्रवाई करेंगे।

क्या था इन दस्तावेजों में?

पैंडोरा पेपर्स में कई तरह की जानकारी थी, जो ये बताती थी कि कैसे अमीर लोग अपने पैसे को छिपाते हैं। इनमें:

ऑफशोर कंपनियां: ये कंपनियां पनामा, बेलीज, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स जैसे टैक्स हैवन में रजिस्टर्ड थीं। इनका इस्तेमाल पैसे छिपाने या टैक्स बचाने के लिए होता था।

ट्रस्ट: कई लोगों ने ट्रस्ट बनाए, जिनमें उनका पैसा सुरक्षित रखा जाता था। ये ट्रस्ट अक्सर परिवार के सदस्यों के नाम पर होते थे।

प्रॉपर्टी डील्स: कुछ लोगों ने विदेशों में बड़ी-बड़ी संपत्तियां खरीदीं, जैसे लंदन में घर या स्विट्जरलैंड में आर्टवर्क।

जटिल वित्तीय ढांचे: ये लोग कई लेयर वाली कंपनियां बनाते थे, ताकि उनके पैसे का असली मालिक पता न चले।

एक रोचक उदाहरण श्रीलंका के एक नेता तिरुकुमार नदेसन का है। उनके नाम पर एक समोआ में रजिस्टर्ड कंपनी थी, जो 31 बेशकीमती पेंटिंग्स की मालिक थी। इनमें एक पेंटिंग थी हिंदू देवी लक्ष्मी की, जिसे राजा रवि वर्मा ने बनाया था। ये पेंटिंग्स स्विट्जरलैंड के एक गोदाम में रखी गई थीं, जहां दुनिया की सबसे कीमती चीजें छिपाई जाती हैं।

क्यों करते हैं लोग ऐसा?


अब सवाल ये है कि लोग अपने पैसे को टैक्स हैवन में क्यों छिपाते हैं? इसके कई कारण हैं:

टैक्स बचाना: टैक्स हैवन में टैक्स के नियम बहुत ढीले होते हैं। वहां लोग अपने पैसे पर कम या बिल्कुल टैक्स नहीं देते।

संपत्ति छिपाना: कई बार लोग अपनी संपत्ति को सरकार, लेनदारों, या कानूनी जांच से बचाने के लिए ऐसा करते हैं।

गैरकानूनी पैसे को छिपाना: कुछ लोग काले धन को सफेद करने के लिए ऑफशोर कंपनियों का इस्तेमाल करते हैं।

निजता: कुछ लोग बस अपनी निजी जिंदगी को गुप्त रखना चाहते हैं।

हालांकि, ये सब करना हमेशा गैरकानूनी नहीं होता। कई बार लोग कानूनी तौर पर ऑफशोर कंपनियां बनाते हैं, जैसे बिजनेस के लिए या संपत्ति को सुरक्षित रखने के लिए। लेकिन अगर इसका इस्तेमाल टैक्स चोरी या गैरकानूनी कामों के लिए होता है, तो ये अपराध बन जाता है।

पैंडोरा पेपर्स का वैश्विक असर

पैंडोरा पेपर्स ने पूरी दुनिया में हलचल मचा दी। कई देशों में इसकी वजह से जांच शुरू हुईं। कुछ उदाहरण:

पाकिस्तान: वहां के 700 से ज्यादा लोगों के नाम आए, जिनमें कई राजनेता और कारोबारी शामिल थे। सरकार ने जांच शुरू की।

रूस: राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के करीबी लोगों के नाम सामने आए। हालांकि, रूस में इस पर ज्यादा कार्रवाई नहीं हुई।

लैटिन अमेरिका: कोलंबिया, अल सल्वाडोर, और अन्य देशों के पूर्व राष्ट्रपतियों के नाम आए। इससे वहां की सरकारों पर दबाव बढ़ा।

इस लीक ने ये भी दिखाया कि टैक्स हैवन का इस्तेमाल सिर्फ अमीर देशों तक सीमित नहीं है। भारत, पाकिस्तान, और अफ्रीकी देशों जैसे कई विकासशील देशों के लोग भी इसमें शामिल थे। इससे ये सवाल उठा कि क्या वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में सुधार की जरूरत है।

भारत में कानूनी और सामाजिक प्रभाव

भारत में पैंडोरा पेपर्स ने कई सवाल खड़े किए। लोग ये जानना चाहते थे कि इतने बड़े लोग अपने पैसे को विदेश में क्यों छिपा रहे हैं। कुछ लोगों ने इसे टैक्स चोरी से जोड़ा, तो कुछ ने कहा कि ये उनकी निजी जिंदगी का मामला है। सरकार ने साफ किया कि वो हर नाम की जांच करेगी और अगर कोई गलत पाया गया, तो सजा दी जाएगी।

इस लीक ने आम लोगों में भी चर्चा छेड़ दी। कई लोगों ने सोशल मीडिया पर सवाल उठाए कि जब आम आदमी को टैक्स देना पड़ता है, तो बड़े लोग ऐसा क्यों नहीं करते। इसने टैक्स सिस्टम में पारदर्शिता की जरूरत को और उजागर किया।

पैंडोरा पेपर्स से क्या सीख मिली?

पैंडोरा पेपर्स ने कई सबक दिए। सबसे बड़ा सबक ये था कि वित्तीय पारदर्शिता बहुत जरूरी है। सरकारों को टैक्स हैवन पर और सख्त नियम बनाने चाहिए। साथ ही, लोगों को ये समझना चाहिए कि टैक्स चोरी न सिर्फ गैरकानूनी है, बल्कि ये देश की अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचाती है।

इसके अलावा, इस लीक ने पत्रकारिता की ताकत को भी दिखाया। ICIJ और उनके पत्रकारों ने बिना डरे इतने बड़े मामले को दुनिया के सामने लाया। ये दिखाता है कि सच्चाई को उजागर करने में मीडिया की कितनी बड़ी भूमिका हो सकती है।

पैंडोरा पेपर्स की कहानी एक जासूसी फिल्म की तरह है, जिसमें रहस्य, साजिश, और बड़े-बड़े नाम शामिल हैं। इसने दुनिया भर के अमीर और ताकतवर लोगों के गुप्त कारनामों को उजागर किया। भारत में भी इसने कई सवाल खड़े किए और सरकार को कार्रवाई करने के लिए मजबूर किया।

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