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Etah News: 11 दिन में दूसरी बार मेडिकल कॉलेज के गेट पर प्रसव, जिम्मेदार मौन – आखिर कार्रवाई करेगा कौन?
Etah News: एटा के वीरांगना अवंतीबाई मेडिकल कॉलेज में लापरवाही और कमीशनखोरी की शर्मनाक तस्वीर फिर उजागर
Etah medical college news
Etah News: (उत्तर प्रदेश) – जनपद मुख्यालय स्थित वीरांगना अवंतीबाई मेडिकल कॉलेज, एटा में इंसानियत को शर्मसार करने वाली एक और घटना सामने आई है। मात्र 11 दिन के भीतर दूसरी बार एक गर्भवती महिला को समय पर इलाज न मिलने के कारण मेडिकल कॉलेज के गेट पर ही खुले में प्रसव करना पड़ा। स्वास्थ्य विभाग और मेडिकल कॉलेज प्रशासन की घोर लापरवाही, साथ ही आशा कार्यकर्ताओं और चिकित्सकों की कमीशनखोरी ने पूरे स्वास्थ्य तंत्र की पोल खोल दी है।
घटना थाना सकीट क्षेत्र के ग्राम रामनगर की रहने वाली गर्भवती महिला सोनी के साथ घटित हुई। वह गांव की आशा कार्यकर्ता मीरा के साथ प्रसव के लिए मेडिकल कॉलेज आई थी। परिजनों का आरोप है कि आशा कार्यकर्ता पहले उसे एक प्राइवेट अस्पताल ले गई, जहां "बच्चा उल्टा है" कहकर भर्ती करने से मना कर दिया गया। बाद में मेडिकल कॉलेज लाया गया, लेकिन तब तक प्रसव पीड़ा इतनी तेज हो चुकी थी कि महिला को मुख्य गेट पर ही लेटना पड़ा।
महिला की चीख-पुकार सुनकर वहां मौजूद अन्य महिलाओं ने साड़ी का घेरा बनाकर गेट पर ही उसका प्रसव कराया। कुछ देर बाद मेडिकल स्टाफ मौके पर पहुंचा और खानापूर्ति करते हुए जच्चा-बच्चा को अस्पताल में भर्ती कराया। गनीमत रही कि दोनों सुरक्षित हैं।यह कोई पहली घटना नहीं है। 13 जुलाई को भी एक अन्य महिला ने इसी मेडिकल कॉलेज के गेट पर बच्ची को जन्म दिया था। अब सवाल यह उठता है कि मेडिकल कॉलेज का गेट क्या नया लेबर रूम बन गया है?
स्थानीय युवक अरुण कुमार और पीड़ित परिवार ने आरोप लगाया है कि मेडिकल स्टाफ, डॉक्टर और आशा कार्यकर्ताओं की मिलीभगत से गरीब मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों में रेफर किया जाता है, जिससे सभी को मोटा कमीशन मिलता है। इस 'कमीशन चक्र' में एंबुलेंस चालक से लेकर अस्पताल संचालक तक शामिल हैं।सरकारी अस्पतालों में न तो समय पर जांच होती है, न दवाइयाँ दी जाती हैं, और न ही गंभीर मामलों में संवेदनशीलता दिखाई जाती है। जबकि आशा कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी होती है कि वे हर गर्भवती महिला की नियमित जांच, टीकाकरण और सुरक्षित प्रसव सुनिश्चित करें।
सवाल कई हैं, जवाब कोई नहीं
मेडिकल कॉलेज के गेट पर तैनात सुरक्षाकर्मी और अटेंडेंट उस वक्त कहाँ थे?
महिला की चीखें उन्हें क्यों नहीं सुनाई दीं?
क्या यह लापरवाही किसी साज़िश का हिस्सा है?
और सबसे बड़ा सवाल – आखिर जवाबदेही तय कब होगी?
मुख्य चिकित्सा अधीक्षक एस. चंद्रा मौके पर पहुंचे और सिर्फ खानापूर्ति कर चले गए। संयोग यह रहा कि वह उस दिन एटा में ही मौजूद थे, अन्यथा वह प्रतिदिन की तरह अलीगढ़ चले गए होते। बाद में प्राचार्या डॉ. रजनी पटेल ने भी इमरजेंसी और वार्ड का निरीक्षण किया और हमेशा की तरह सिर्फ आश्वासन देकर चली गईं।
युवा छात्र कल्याण परिषद के संयुक्त सचिव शिवम मिश्रा ने इस भ्रष्ट तंत्र को तोड़ने के लिए मेडिकल कॉलेज की अध्यक्ष, अलीगढ़ मंडल की आयुक्त से कड़ी कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि कुछ दिन पहले एक महिला चिकित्सक ने मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरों की अनुपस्थिति, हफ्ते में केवल दो दिन आकर फर्जी उपस्थिति दर्ज करने और अन्य अनियमितताओं को उजागर किया था। लेकिन वह शिकायत भी ठंडे बस्ते में डाल दी गई।
जब डॉक्टर समय पर नहीं आएंगे, तो इलाज कौन करेगा?
अगर मेडिकल कॉलेज में हो रहे अवैध कार्यों की निष्पक्ष जांच की जाए, तो यह केस पूरे प्रदेश में एक मिसाल बन सकता है। जब तक इस भ्रष्ट तंत्र में शामिल लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं की जाएगी, तब तक गरीब महिलाएं गेट पर ही बच्चों को जन्म देती रहेंगी और मरीज इलाज के लिए भटकते रहेंगे।
अब जिम्मेदारों को जवाब देना होगा
अब यह सिर्फ एक सवाल नहीं, बल्कि एक मांग बन चुकी है
क्या ये घटनाएं किसी बड़ी कार्रवाई की मांग नहीं करतीं?
या फिर सब कुछ ऐसे ही चलता रहेगा — “कमीशन चलता रहे, मरीज मरता रहे?
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