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Meerut News: गंगापुरम कॉलोनी विवाद में बड़ा मोड़, RTI और हाईकोर्ट ने किया साफ – न विकासकर्ता, न मालिक
Meerut News: गंगापुरम कॉलोनी विवाद में बड़ा मोड़ मनोज सैन ने अब न केवल अपने पक्ष को मजबूती से रखा है, बल्कि दस्तावेज़ों और न्यायिक आदेशों से यह साबित कर दिखाया है कि उनका कॉलोनी के विकास या स्वामित्व से कोई लेना-देना नहीं है।
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Meerut News: गंगापुरम कॉलोनी से जुड़ा बहुचर्चित विवाद अब निर्णायक मोड़ पर है। वर्षों से इस विवाद में घसीटे जा रहे मनोज सैन ने अब न केवल अपने पक्ष को मजबूती से रखा है, बल्कि दस्तावेज़ों और न्यायिक आदेशों से यह साबित कर दिखाया है कि उनका कॉलोनी के विकास या स्वामित्व से कोई लेना-देना नहीं है।
न्यूज़ट्रैक को प्राप्त प्राधिकरण रिकॉर्ड, RTI के जवाब, और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेशों में यह बात साफ-साफ दर्ज है कि मनोज सैन न तो कॉलोनी के मालिक हैं, न ही विकासकर्ता। मानचित्र संख्या 10/04 के आधार पर प्लॉटों की बिक्री करने वाले व्यक्ति ईश्वरपाल, कंवरपाल और धर्मपाल थे। मनोज सैन का उनसे केवल मुख्तार-ए-आम (पॉवर ऑफ अटॉर्नी) का संबंध था, जिसके ज़रिए उन्होंने विधिसम्मत तरीके से विक्रय पत्रों का पंजीकरण कराया।
RTI और कोर्ट के आदेश में मिली स्पष्टता
दिनांक 25 जनवरी 2024 को विकास प्राधिकरण को भेजे गए आवेदन के उत्तर में यह साफ़ कहा गया कि मनोज सैन का नाम न तो विकासकर्ता के रूप में दर्ज है, न ही उन्हें किसी विकास कार्य में अधिकृत किया गया। इसी बात की पुष्टि 19 अप्रैल 2024 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी की, जहां स्पष्ट रूप से आदेश दिया गया कि प्रार्थी मनोज सैन आर्बिट्रेशन के पक्षकार नहीं हैं, और इस कारण उनके खिलाफ कोई वैधानिक कार्यवाही नहीं की जा सकती।
इस मामले में मनोज सैन ने कहा, मुझे जानबूझकर विवाद में घसीटा गया। अब जब कोर्ट और प्राधिकरण ने स्पष्ट कर दिया कि मैं विकासकर्ता नहीं हूं, तो मेरी छवि क्यों धूमिल की गई?”उन्होंने यह भी बताया कि जितने भी विक्रय पत्र पंजीकृत हुए, उनमें यह स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि खरीदार ने कॉलोनी का विकास देखा और संतुष्ट होकर खरीद की। साथ ही, मेंटेनेंस शुल्क भविष्य में खरीदारों द्वारा अपने हिस्से अनुसार अदा किया जाना है, जिसका ज़िम्मा भी स्पष्ट किया गया है।
विकास प्राधिकरण के नोटिस में यह निर्देश भी दिया गया है कि प्लॉट खरीदारों को अनुमन्य शुल्क जमा करना होगा। मनोज सैन की मानें तो शिकायतकर्ताओं में वें लोग शामिल हैं जो कि मूल खरीददार नहीं हैं। उन्होंने किसी दूसरे से मकान खरीदें हैं।
अब जब सभी दस्तावेज़ और न्यायिक आदेश यह स्पष्ट कर चुके हैं कि मनोज सैन का कॉलोनी विकास या स्वामित्व से कोई वास्ता नहीं, तो सवाल उठता है – उन्हें वर्षों तक इस विवाद में क्यों और किस मंशा से फंसाया गया?यह मामला अब सिर्फ एक व्यक्ति की कानूनी विजय का नहीं, बल्कि एक सच्चे नागरिक की प्रतिष्ठा की पुनर्स्थापना का उदाहरण बन गया है।"सत्य को दबाया जा सकता है, मिटाया नहीं जा सकता — और मनोज सैन इसका जीता-जागता प्रमाण हैं।"
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