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Muzaffarnagar News: प्रेम और सेवा की मिसाल बनी आशा, पति को पीठ पर बैठाकर कर रही 150 KM पैदल यात्रा
Muzaffarnagar News: एक पत्नी अपने दिव्यांग पति को पीठ पर बैठाकर लगभग 150 किलोमीटर की पैदल कांवड़ यात्रा पर निकली है।
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Muzaffarnagar News: उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में कांवड़ यात्रा के दौरान एक भावुक कर देने वाली तस्वीर सामने आई है, जिसने लोगों को कहने पर मजबूर कर दिया बीवी हो तो ऐसी! कोई हाथ जोड़ रहा है, कोई ताली बजा रहा है, तो कोई अपने अंदाज़ में इस महिला के हौसले की सराहना कर रहा है।दरअसल, एक पत्नी अपने दिव्यांग पति को पीठ पर बैठाकर लगभग 150 किलोमीटर की पैदल कांवड़ यात्रा पर निकली है। यह तस्वीर आज के समाज में उन पत्नियों के लिए एक आईना है, जो अपने पतियों के साथ हिंसक घटनाएं कर चुकी हैं।
जहां एक ओर आए दिन महिलाओं द्वारा किए गए अपराधों की घटनाएं सामने आ रही हैं, वहीं यह तस्वीर एक **पतिव्रता पत्नी** की आस्था, समर्पण और सेवा का प्रतीक बनकर सामने आई है। यह महिला अपने पति के स्वास्थ्य की कामना को लेकर कांवड़ यात्रा पर निकली है।
हरिद्वार से मोदीनगर तक पीठ पर पति, साथ में दो बेटे
यह शिवभक्त महिला आशा, अपने पति सचिन को हरिद्वार से गंगाजल लेकर मोदीनगर तक कांवड़ यात्रा करा रही हैं। उनके साथ उनके दो बेटे भी पैदल चल रहे हैं।सचिन पिछले 13 वर्षों से कांवड़ यात्रा करते रहे हैं, लेकिन पिछले साल रीढ़ की हड्डी के ऑपरेशन के बाद वह पैरालाइज्ड हो गए और अब चलने में असमर्थ हैं। जब इस बार कांवड़ यात्रा का समय आया, तो आशा ने ठान लिया कि अगर पति नहीं चल सकते, तो वो उन्हें खुद पीठ पर बैठाकर कांवड़ यात्रा पूरी कराएंगी।
पत्नी की आस्था और सेवा का प्रतीक बनी आशा
आशा का कहना है,"पति की सेवा में ही मेवा है, बाकी सब कुछ व्यर्थ है। जो लोग रास्ते में मिलते हैं, वे ताली बजाते हैं, हाथ जोड़ते हैं और कहते हैं – क्या नसीब है, जो ऐसी पत्नी मिली है।आशा ने यह भी बताया कि सचिन घर के इकलौते कमाने वाले थे। वह पेंटिंग और पॉप का काम करते थे, लेकिन बीमारी के बाद से घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई है। कई बार घर में सब्जी तक नहीं बनती, तो सूखी रोटी या चटनी से खाना खाते हैं।उन्होंने बताया कि सचिन का इलाज आयुष्मान कार्ड से हुआ, और अगर वह कार्ड न होता, तो शायद वह आज जीवित भी नहीं होते।
सचिन बोले – पत्नी की जिद और श्रद्धा ने मुझे भावुक कर दिया
सचिन ने कहा मैं मोदीनगर, बखरवा (गाज़ियाबाद) का रहने वाला हूं। पिछले साल 1 अगस्त को ऑपरेशन हुआ था, जिसके बाद से मैं दोनों पैरों से अपाहिज हो गया हूं। मैंने आशा से कभी नहीं कहा कि मुझे कांवड़ यात्रा पर लेकर चलो – यह सब उसकी अपनी श्रद्धा और प्रेम है।मैं 16 सालों से कांवड़ ला रहा था। हर बार पैदल चलता था। इस बार जब चल नहीं सका तो आशा ने कहा – अब मैं तुम्हें पीठ पर बैठाकर बाबा के दर्शन कराऊंगी।सचिन ने कहा कि समाज में आज भी ऐसे लोग हैं जो सिर्फ हंसी उड़ाते हैं, लेकिन उनकी पत्नी ने उन्हें सम्मान से जीने की एक नई वजह दे दी है।
सरकार से मांग – दिव्यांगों के लिए रोज़गार और सहायता मिले
आशा का सरकार से अनुरोध है कि मेरे पति को कोई काम या सहायता दी जाए ताकि वह सम्मान से जी सकें। हम भी आत्मनिर्भर बन सकें। हमारे दो बेटे हैं, और हमारे पास कोई स्थायी आय नहीं है। अगर सरकार मदद करे तो हम अपना जीवन थोड़ी सुविधा से बिता सकें।
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