Sonbhadra News: नदियों के लिए फेफड़े का काम करते हैं बालू-पत्थर, पदयात्रा के जरिए जांची जाएगी स्थिति

Sonbhadra News: सोनभद्र में नदियों के संरक्षण पर पर्यावरणविदों ने चर्चा की और जलीय पर्यावरण की सुरक्षा के लिए पदयात्रा निकालने का निर्णय लिया। पर्यावरणविदों ने बताया कि बालू और पत्थर नदियों के लिए फेफड़़े के समान हैं, जिनका संरक्षण जरूरी है। नदी बहाव क्षेत्र में अतिक्रमण से आपदाएं भी आ सकती हैं, जिसे रोकने के लिए रणनीति बनाई जा रही है।

Kaushlendra Pandey
Published on: 23 Aug 2025 7:58 PM IST
Sonbhadra News: नदियों के लिए फेफड़े का काम करते हैं बालू-पत्थर, पदयात्रा के जरिए जांची जाएगी स्थिति
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 नदियों के लिए फेफड़े का काम करते हैं बालू-पत्थर, पदयात्रा के जरिए जांची जाएगी स्थिति (photo: social media )

Sonbhadra News: बालू और पत्थर नदियों के लिए फेफड़़े का काम करते हैं। जलीय पर्यावरण बनाए रखने के लिए इनका संरक्षण-सुरक्षा जरूरी है। इन्हीं सारे मसलों को लेकर शनिवार को म्योरपुर ब्लॉक के गोविंदपुर स्थित बनवासी सेवा आश्रम में पर्यावरणविदों के बीच एक परिचर्चा आयोजित में की गई। इस दौरान नदियों के अस्तित्व पर मंडरा रहे खतरे को लेकर चिंता जताने के साथ ही, जलीय पर्यावरण को कैसे बेहतर बनाए रखा जाए, इस पर खासा विचार-विमर्श किया गया। नदियों से जुड़ी उपयोगी जानकारियों पर चर्चा की गई और निर्णय लिया गया है कि दुद्धी ब्लॉक की प्रमुख नदियों से जुड़ी नदियों-नालों की पदयात्रा के जरिए स्थिति जांची जाएगी यानी पर्यावरणीय अध्ययन किया जाएगौ।

प्रथम चरण में इन नदियों को लेकर निकाली जाएगी पदयात्रा :

मुहिम के पहले चरण में म्योरपुर के रासपहरी से पदयात्रा का शुभारंभ किया जाएगा। पहले दुद्धी ब्लाक एरिया से गुजरने वाली कनहर नदी में जाकर मिलने वाली लौवा नदी किनारे लगभग 20 किमी पदयात्रा, कर नदी और उसमें मौजूद रहने वाले खनिज, जलीय पर्यावरण की स्थिति जानी जाएगी। वहीं, इसके बाद बीजपुर क्षेत्र स्थित अंजीर नदी और सहायक नदी का दर्जा रखने वाले जमती नाला के बीच की यात्रा कर, नदी और उससे जुड़े नालों का पर्यावरण स्वरूप जाना जाएगा। इस दौरान जो स्थिति सामने आएगी, उसके आधार पर नदी के पर्यावरणीय स्वरूप को बरकरार रखने के लिए आगे की रणनीति बनाई जाएगी।

नदी पर संकंट का सीधा मतलब है मानव जीवन के लिए खतरा : डॉ गौतम

परिचर्चा में शिरकत कर रहे वरिष्ठ पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. अनिल गौतम ने कहा कि नदियों से जीव और जंतु दोनों का पोषण होता है। इनसे सिंचाई, भूजल रिचार्जिंग और पेय जल की उपलब्धता सुनिश्चित होती है। ऐसे में अगर नदियों के अस्तित्व पर किसी तरह का संकट मंडराता है तो उसका सीधा सा मतलब है कि मानव जीवन पर भी संकट का खतरा मंडराने लगा है। पुराणों में उल्लिखित किए गए आख्यानों का जिक्र करते हुए कहा कि भादो मास के चतुर्दशी पर नदी के बीच से सौ कदम दाए और सौ कदम बाएं की जगह नदी की धारा मानी जाती है वहीं बाढ़ क्षेत्र के बहाव वाले हिस्से को नदी के गर्भ का दर्जा दिया गया है। इस दौरान बालू और पत्थर नदी के लिए फेफड़े का काम करते हैं और इन्हीं के जरिए नदी का जल स्रोत को आगे भी बना रहता है। इसलिए सभी नदियों के बहाव क्षेत्र को उनके मूल स्वरूप में सुरक्षित बनाए रखना जरूरी है।

नदियों के बहाव क्षेत्र से छेड़छाड़ देती है आपदा को न्यौताः

पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. गौतम का कहना था कि नदियों के बहाव क्षेत्र में जब अतिक्रमण की स्थिति बनती है तो उससे उतराखंड जैसी आपदाएं दिखती हैं। उन्होंने परिचर्चा में मौजूद लोगों को पदयात्रा के दौरान किए जाने वाली अध्ययन की विषवस्तु और उससे जुड़ी बारीकियों की जानकारी दी। कहा कि पदयात्रा के दौरान ग्रामीणों से मिलने जानकारियां अध्ययन के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होंगी। इस मौके पर वैज्ञानिक प्रेम नारायण, देवनाथ भाई, सुरेश, यशश्वी पांडेय, उमेश चौबे, संगीता, अनु प्रिया, बेचन, मीना सहित अन्य की मौजूदगी बनी रही।

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Monika

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Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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