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अब शांति नहीं… सिर्फ जंग की तैयारी! ट्रंप ने नाटो को बना दिया परमाणु राक्षस! 5% GDP अब युद्ध पर होगा खर्च
Trump NATO speech: नाटो के 32 देशों के नेताओं ने अब सार्वजनिक रूप से घोषणा की है कि वे 2035 तक अपने रक्षा खर्च को जीडीपी का 5% तक बढ़ाएंगे। यह वो आंकड़ा है जो अब तक किसी भी लोकतांत्रिक सैन्य गठबंधन ने खुले तौर पर स्वीकार नहीं किया था।
Trump NATO speech: क्या यह तीसरे विश्वयुद्ध की आहट है? क्या ट्रंप अब दुनिया को हथियारों की दौड़ में झोंकने की तैयारी कर चुके हैं? इन सवालों की आग उस वक्त और भड़क उठी जब हेग में आयोजित नाटो शिखर सम्मेलन से एक ऐसी घोषणा सामने आई, जिसने यूरोप से लेकर एशिया तक की सेनाओं को चौंका दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंच पर चढ़कर महज कुछ शब्द बोले — लेकिन वे शब्द बम से कम न थे। नाटो के 32 देशों के नेताओं ने अब सार्वजनिक रूप से घोषणा की है कि वे 2035 तक अपने रक्षा खर्च को जीडीपी का 5% तक बढ़ाएंगे। यह वो आंकड़ा है जो अब तक किसी भी लोकतांत्रिक सैन्य गठबंधन ने खुले तौर पर स्वीकार नहीं किया था। और इसका श्रेय ट्रंप को दिया जा रहा है — एक ऐसे नेता को जो बार-बार कहता आया है कि “अमेरिका को अब दूसरों की रक्षा मुफ्त में नहीं करनी चाहिए।”
एक पर हमला = सब पर हमला: अनुच्छेद 5 की गर्जना
इस घोषणा में सबसे विस्फोटक वाक्य है: “एक देश पर हमला सभी पर हमला है।” यानी यदि रूस, चीन या कोई तीसरी ताकत किसी नाटो सदस्य पर हमला करती है, तो 32 देशों की सेनाएं मिलकर जवाब देंगी — परमाणु हो या पारंपरिक। यह बयान सिर्फ एक कागज़ी औपचारिकता नहीं, बल्कि ट्रंप के दबाव की परिणति है। उनके कहने का लहजा साफ था: “अब या तो सहयोगी देश पैसा लगाएं, या अमेरिका अपनी प्राथमिकताएं बदले।” इस वाक्य ने कई यूरोपीय राष्ट्राध्यक्षों को रातों की नींद से वंचित कर दिया। और यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। अमेरिका की सैन्य शक्ति पहले से ही दुनिया की सबसे बड़ी है। लेकिन अब जब जर्मनी, फ्रांस, पोलैंड, इटली और यहां तक कि नॉर्डिक देश भी अपनी जीडीपी का 5% हथियारों पर खर्च करेंगे, तो यह साफ संकेत है कि दुनिया एक नई सैन्य दौड़ की ओर जा रही है।
यूक्रेन पर बिना नाम लिए चाबुक
शिखर सम्मेलन की अंतिम घोषणा में भले ही रूस का नाम सीधे-सीधे न लिया गया हो, लेकिन हर शब्द उसकी ओर तना एक तीर था। दस्तावेज़ में कहा गया कि “यूक्रेन की सुरक्षा, हमारी सुरक्षा में योगदान करती है”, जो कि एक स्पष्ट संदेश है — यूक्रेन सिर्फ एक देश नहीं, एक सुरक्षा दीवार है। और ट्रंप के इस मंच पर होने से इस बयान का महत्व और भी बढ़ गया। व्हाइट हाउस के सूत्रों की मानें तो ट्रंप यूक्रेन को ‘मिनी-नाटो' सुरक्षा कवच देने की योजना पर विचार कर रहे हैं, जो भविष्य में रूस के लिए नई चुनौती बन सकती है।
भारत और एशिया के लिए खतरे की घंटी?
हालांकि नाटो की यह घोषणा मुख्य रूप से यूरोप और उत्तरी अमेरिका से जुड़ी है, लेकिन इसका प्रभाव एशिया, खासकर भारत पर भी पड़ेगा। भारत पहले से ही चीन और पाकिस्तान से दोतरफा सुरक्षा चुनौती झेल रहा है। और अब जब अमेरिका और उसके सहयोगी अपने रक्षा बजट को बढ़ाएंगे, तो एशियाई देशों पर भी दबाव बनेगा — क्या भारत को भी अपने रक्षा खर्च को नई ऊंचाई पर ले जाना चाहिए? भारत की अब तक की नीति “रणनीतिक संतुलन” की रही है, लेकिन अगर रूस और चीन को नाटो के इस ऐलान से खतरा महसूस होता है, तो SCO और BRICS जैसी संस्थाओं के भीतर सामरिक गतिविधियों में तेजी आ सकती है।
क्या ट्रंप ने परमाणु दौड़ को दोबारा शुरू कर दिया है?
ट्रंप के बयानों की खास बात यह है कि वह कभी भी "कूटनीतिक भाषा" में नहीं बोलते। उनका यह साफ-साफ कहना कि “अब सहयोगी देश अपनी जेब से खर्च करें” और “हम सिर्फ फ्री सिक्योरिटी देने नहीं आए हैं” — यह दर्शाता है कि अब नाटो सिर्फ सहयोग का मंच नहीं, बल्कि एक परमाणु-सक्षम सैन्य गठबंधन बनता जा रहा है। बड़े-बड़े थिंक टैंकों का कहना है कि यह ऐलान शीत युद्ध के बाद सबसे बड़ा सामरिक मोड़ है, और इसका असर न केवल रूस, बल्कि चीन, ईरान, उत्तर कोरिया और यहां तक कि भारत जैसे रणनीतिक ताकतों पर भी होगा।
ट्रंप ने एक नई दुनिया की नींव रख दी है
हेग से जो ऐलान निकला, वो सिर्फ एक घोषणापत्र नहीं, एक नई भू-राजनीतिक व्यवस्था का शिलान्यास है। दुनिया अब दो भागों में बंटती दिख रही है — एक तरफ अमेरिका और उसका ‘5% क्लब’, दूसरी ओर रूस, चीन और उनके सैन्य साझेदार। और इस बदलाव के केंद्र में हैं — डोनाल्ड ट्रंप, एक ऐसा नेता जिसने दोस्त और दुश्मन — दोनों की नींदें उड़ा दी हैं। अब सवाल सिर्फ इतना है — क्या ये बढ़ा हुआ रक्षा बजट शांति की गारंटी है या आने वाले युद्ध की दस्तक? दुनिया को जवाब का इंतजार है… लेकिन शायद ट्रंप ने सवाल ही बदल दिया है।
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