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Bangladesh को 'कंगाल' कर रहे युनूस, शेख हसीना की मेहनत पर फेरा पानी, अर्थव्यवस्था पर गहरे संकट के संकेत
Bangladesh Economy Crisis: बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में गिरावट के संकेत मिल रहे हैं। शेख हसीना के 15 वर्षों के स्थिर नेतृत्व के बाद यूनुस सरकार का पहला साल आर्थिक मोर्चे पर चुनौतीपूर्ण रहा है। विश्व बैंक की रिपोर्ट में बताया गया है कि वित्तीय समावेशन के मामले में बांग्लादेश दक्षिण एशिया के देशों में कमजोर स्थिति में है।
Bangladesh Economy Crisis: पिछले 15 वर्षों में शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश ने आर्थिक विकास के कई कीर्तिमान स्थापित किए थे। रेडीमेड गारमेंट सेक्टर, रेमिटेंस, गरीबी उन्मूलन, मानव संसाधन और बुनियादी ढांचे में बांग्लादेश की प्रगति को दक्षिण एशिया में एक मिसाल के तौर पर देखा गया। लेकिन अब यह रफ्तार धीमी पड़ती नजर आ रही है।
हाल ही में आई विश्व बैंक की ग्लोबल फिन्डेक्स 2025 रिपोर्ट और बांग्लादेश के राष्ट्रीय राजस्व बोर्ड (NBR) के आंकड़े कुछ चिंताजनक संकेत दे रहे हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, देश में वित्तीय समावेशन की दर में तेज गिरावट दर्ज हुई है और राजस्व संग्रह भी कमजोर हुआ है। ये दोनों पहलू बांग्लादेश की आर्थिक स्थिरता के लिए गंभीर खतरे बनकर उभर रहे हैं।
यूनुस सरकार के शुरुआती कार्यकाल में बढ़ती चुनौतियां
यूनुस सरकार को सत्ता संभाले अभी एक साल भी नहीं हुआ है। लेकिन, आर्थिक मोर्चे पर हालात बिगड़ते दिख रहे हैं। उन्होंने चीन और पाकिस्तान से रणनीतिक संबंधों को मजबूत कर नई विदेश नीति की पहल की मगर ये प्रयास फिलहाल असफल नजर आ रहे हैं। कानून-व्यवस्था के साथ-साथ आर्थिक संकेतकों में गिरावट ने सरकार की चुनौतियों को बढ़ा दिया है।
वित्तीय समावेशन में 10% की गिरावट
विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में बांग्लादेश में 15 साल से ऊपर की उम्र के सिर्फ 43% लोगों के पास ही बैंक या मोबाइल मनी खाता है, जबकि 2021 में यह आंकड़ा 53% था। यानी तीन साल में इसमें 10% की गिरावट आई है।
ग्लोबल स्तर पर जहां वित्तीय समावेशन में बढ़ोतरी हुई है, वहीं बांग्लादेश पीछे छूट गया है। दक्षिण एशिया में भारत की बैंकिंग समावेशन दर 89% और श्रीलंका की 80% से अधिक है। जबकि बांग्लादेश इस सूची में सिर्फ पाकिस्तान से बेहतर स्थिति में है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि मोबाइल वित्तीय सेवा (MFS) खाताधारकों की संख्या में भी गिरावट आई है। 2021 में यह दर 29% थी, जो 2024 में घटकर 20% रह गई। बैंकों और वित्तीय संस्थानों में खाता रखने वालों की संख्या भी घटकर 23% हो गई है।
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