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बिजली निजीकरण के विरोध में कर्मचारियों ने विधायकों को लिखा पत्र, प्रक्रिया रोकने की मांग
Electricity Privatization: संघर्ष समिति ने पत्र में सभी विधायकों से अपील की है कि वे गंभीर आरोपों पर ध्यान दें। इस निजीकरण के निर्णय को रद्द करवाने के लिए कदम उठाएं। समिति ने निजीकरण से जुड़े दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की मांग की है।
Electricity Privatization in UP (Photo: Network)
Electricity Privatization: उत्तर प्रदेश विधान सभा के मानसून सत्र से पहले विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समित ने एक कदम उठाया है। पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के प्रस्तावित निजीकरण के खिलाफ समिति ने राज्य के सांसदों और विधायकों को विस्तृत पत्र लिखकर प्रक्रिया को रोकने की मांग की है। जिसे समिति ने अपारदर्शी और संदेह से भरी बताया है। समिति ने अपने पत्र में निजीकरण की प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
निगम घाटे में मुनाफे में हैं: समिति के दावा अनुसार पावर कार्पोरेशन प्रबंधन द्वारा सब्सिडी और सरकारी विभागों के बकाया बिलों को घाटा दिखाया जा रहा है। इन राशियों को जोड़ दिया जाए। तो वर्ष 2024-25 में पूर्वांचल निगम को 2,253 करोड़ रुपये और दक्षिणांचल निगम को 3,011 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ है।
विवादित कंसलटेंट: निजीकरण प्रक्रिया के लिए मेसर्स ग्रांट थॉर्टन को ट्रांजैक्शन कंसलटेंट बनाया गया है। यह कंपनी पहले विवादों में रही है। अमेरिका में जुर्माना भी लग चुका है। समिति ने चिंता जताई है कि कंपनी अदानी पॉवर के लिए भी काम करती है, जिससे हितों के टकराव की संभावना है।
बिजली दरें बढ़ने की आशंका: प्रदेश में निजीकरण के बाद बिजली की कीमतें दो से तीन गुना तक बढ़ सकती हैं। उन्होंने मुंबई का उदाहरण दिया, जहां निजी क्षेत्र में बिजली की दरें 15.71 रुपये प्रति यूनिट हैं, जबकि उत्तर प्रदेश में अधिकतम दरें 6.50 रुपये प्रति यूनिट हैं।
संपत्तियों का कम मूल्यांकन: समिति ने आरोप लगाया कि लगभग एक लाख करोड़ रुपये की परिसंपत्तियों वाले इन निगमों को सिर्फ 6,500 करोड़ रुपये की रिजर्व प्राइस पर बेचा जा रहा है, जो इलेक्ट्रिसिटी एक्ट का उल्लंघन है।
अघोषित दस्तावेज: समिति ने लिखा कि निजीकरण का आधार माने जाने वाले ड्राफ्ट स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्यूमेंट 2025 को सार्वजनिक नहीं किया गया है, पारदर्शिता की कमी निजीकरण में साफ दिखाई देती है।
अरबों की जमीन लीज पर: समिति ने आरोप लगाया कि 42 जिलों की अरबों-खरबों रुपये की जमीन निजी घरानों को मात्र एक रुपये की लीज पर देने की योजना है।
विधायकों से हस्तक्षेप की मांग
संघर्ष समिति ने पत्र में सभी विधायकों से अपील की है कि वे इन गंभीर आरोपों पर ध्यान दें। इस निजीकरण के निर्णय को रद्द करवाने के लिए कदम उठाएं। समिति ने निजीकरण से जुड़े सभी दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की भी मांग की है। इस पत्र के बाद देखना दिलचस्प होगा कि राज्य सरकार और प्रदेश के जनप्रतिनिधि इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाते हैं।
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